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________________ ५६६ वितीये सूत्रकृतांगे वितीय श्रुतस्कंधे प्रथमाध्ययनं. सनियुं में में आयुष्यवंत एवा ( जगवया के० ) नगवंते (एवमरकाय के०) एम कर्दा ले ( इह के० ) ए वचन थकी सुयगडांगने बीजे श्रुतस्कंधे (खलु) ए शब्द वाक्यालंकारने अर्थ (पोझरीएणामायणे के०) पुंमरीक नामे अध्ययन ते पुमरीक कमलनी उपमा थशे (तस्सणं के ) ते कारणे एवो नाम कह्यो तेनुं (थयमठेपणते के० ) एजे बागल कहेशे ते अर्थ जाणवो ॥ १ ॥ (सेज हाणामए के०) ते जेमतेम कहेवो. नाम इति संनावनाने अर्थ ले. जेम को एक (पुरकरिणीसिया के०) पुष्करणी एटले कमल सहित वावडी ते केवी तोके (ब दुनदगाके०) घणो अगाध मां पाणी (बहुसेयाके) घणो जेमां कर्दम (बदुपुरक लाल-दहा के०) घणो पुष्करणी पणो संपूर्ण अर्थात् पुष्करणीनो अर्थ जेणे लाधोडे एटले जेवो नाम तेवा परिणामे एवी (पुंमरिकिणी के०) पुमरिकिणी एटले श्वेत क मल सहित वावडी (पासादिया के) निर्मल जले करीने प्रसन्न चित्त कारणी (दरिसणिया के०) घणा लोकने देखवा योग्य (अनिरूवा के०) जेने विषे सर्व काल हंस चक्रवाक गजमहिषादि रूपडे ते कारणे अनिरूपले (पडिरूवा के ) स्वह नाव थकी सर्व रूप प्रत्ये वंचे ते माटे प्रतिरूपडे ॥॥ (तीसेणंपुरकरिणीए के० ) ते पुष्करणीने विषे ( तबतबदेसेदेसे के० ) त्यां त्यां ते ते प्रदेशे (तहिंतहिंब हवेपनमरोमरीयाबुश्या के० ) त्यां त्यां घणा प्रधान पुंडरीक नामे पद्म एटले कमल जगवंत श्रीमहावीर देवे कह्या (अणुपुवया के) ते कमल थानुपूर्वियें उपया (क सियाके) पाणी थकी उपर वर्तेले (रुश्ताके०) दीपता (वन्नमंताके० ) प्रधान वर्ण वाला कमल (गंधमंता के०) सुगंधवाला (रसमंता के०) रसवाला (फासमं ता के०) सुकोमल स्पर्श सहित डे (पासादिया के०) प्रासादनीक प्रसन्नचित्तकार पीक (दरिसणिया के०) लोकने देखवा योग्य (अनिरूवा के०) अनिरूप (पडि रूवा के०) प्रतिरूप ॥३॥ (तीसेणंपुरकरिणीए के० ) ते पुष्करणीने विषे (बहुमस देसनाए के) घणा मध्य प्रदेशना नागने विचाले (एगेमहंपनमवरपोमरीएबुशए के०) एक महोटुं प्रधान पोंझरीक नामा कमल बोट्युंडे (अणुपुबुहिए के०) ते आनुपूर्वियें चडती चडती पांखडीयें करी त्यो उस्सिते रुश्ले वाममंते गंधमंते रसमंते फासमं ते पासादीए जाव पडिरूवे एम यावत् प्रतिरूप सुधीना अर्थ पूर्ववत् जाणवा ॥ ४ ॥ ( सवावंतिचणं के ) इत्यादिक सर्व समय नाव एवे वाक्यालंकारे जाणवा (तीसे पंपुरकरिणीए के०) ते पुष्करणीने विषे (तबतबदेसेदेसे के०) त्या त्या प्रदेशे एटले एवा समग्रनागोने विषे (तस्तिहिंबहवेपनमवरपोमरीयाबुझ्याके) त्या त्यां पूर्वोक्त गुण सहित एवा घणा पुंमरीक कमल बोल्याने ते सर्व अपुपुत्रुज्यिा कसिया रुइला जावपडि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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