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पति राखी ले तेने धनुगत थईने में पण ए विवक कीधो ले. सऊनो पासें कमा मा गी, तेना करतां विशेषपणे उर्जनो पासें क्षमा मागुं लु, केम के तेउनो स्वनावज एवो होय के कोश्ना हाथथी गुन कृत्य थाय ने ते जोइ तेमने मनःसंताप उपजे बने बीजानी हानी थाय तेमां तेलान समजे दे. बीजाना दोष कहाडवामां महा पंमि त होय जे. बीजाना कल्याणरूप घृतनी उपर माखी थइ बेसे वे इत्यादिक अगणित दीर्घदोषोयें करी युक्त इष्टजनो होय , एवा उष्टजनो उचूक समान वे तेथीते
था जिनवाणी रूप सूर्यना प्रकाश थकी अंध थश्ने विपर्यासने पामशे, धने ष बुद्धिथी ईर्ष्या करशे तेथी तेमना हृदयमा ताप उत्पन्न थशे तेने माटें दुं तेमनी पासें क्षमा मागुं बु, कारणके, ते ताप उत्पन्न थवानुं कारण ते मने गणशे. अस्तु.
शा० नीच मा. ज्ञान प्रसाररूप पुण्यकर्म उपार्जन करवामां प्रथम पंक्तिमां गणवा लायक म हान्पुरुष जेणे लोकोपकारने अर्थ पिस्तालीश बागम मूल तथा तेउमाथी जेनी टीका प्रमुख जे अंग मले ते सहित मुश्ति करी प्रसिद करवानो उद्योग या समय मां प्रसार कीधो ले; तेवा सऊन गृहस्थोनी नुत्पत्ति विषे सहज लख्या विना मारी कलम अन्यकार्य करवामां चाली शकती नथी. तेथी यत्किचित् ल बुं. बंगाला इलाकामां बालोचर, मकशुदाबाद,अने मुरसिदाबाद एवात्रण नामें उत्लखातुं सं दर शहेर जे. ज्यां कृष्णगढथीयावी निवास करनारा उसवंशरूप नंदन वनमां कल्पवृक्ष स मान उगडगोत्रीय, धर्म, न्याय, विवक थने विनयादिक श्रेष्टगुणे युक्त,तेमज सर्व सत्यवा दिनमा अग्रेसर,महाबुदिनिधि, दीन जीवने तन, मन,धनवडे सदाय करनार, रूडा स्वना ववाला, पुस्य प्रनावरूप चंइना प्रकाशवडे दिशाउने प्रकाश करनारा एवा “राय बुद्धसिं हजी" नामें श्रावक श्रीजिनधर्म उपर महोटा श्रज्ञावान हता. तेमनी कुशलादे नामें पत्नी नी कुदियकी संवत् १७३७ ना माघवदि एकमने गुरुवारने दिवसें राय प्रतापसिंहनामें कुलदीपक सुपुत्र उत्पन्न थया. ते सर्व धनाढयोमा शिरोमणि अने महाधर्मनिष्ठ तेमज दमावान् तथा धर्माऽधर्मना निर्णय करनारामां अग्रेसर थया. तेमनी च तुर्थ पत्नीनुं नाम महताबबाई हतुं. तेमणे उसवंशमां मुकुटमणि, न्यायमार्ग लक्ष्मी नु उपार्जन करनार तथा धर्म, अर्थ, काम, ए त्रिवर्गना साधनारा बने प्राणिमात्र ने विषे दयाईपणाएं युक्त, एवा महातेजस्वी बे पुत्रोने जन्म प्राप्यो. तेमा वडा पुत्रनुं नाम " रायलक्ष्मीपति सिंह बाहार” तथा जेमणे यावा ग्रंथो उपावी प्रसिह करवा नो उद्योग आरंन्यो , ते कनिष्ट पुत्रनु नाम “रायधनपति सिंह बाहाउर" . ए बेदु सद् गृहस्थो, सजुणनिधान अने मनुष्य मात्रना कल्याणमा उत्सुक , माटें था जिनधर्म
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