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रायधनपतसिंघ बादाउरका जैनागम संग्रह नाग उसरा. २००१ नगवंचणं नदालु संतेगश्या मणुस्सा नवंति तं जहा आरणिया आवसहिया गामणियंतिया कण्हुई रदस्सिया जेहिं समणोवा सगस्स आयाणसो आमरणंताए दंझे णिकित्ते नव णो बदु संजया णो बदुपडिविरया पाण नूय जीव सत्तेहिं ते सतो अप्पणा सच्चा मोसाइं एवं विप्पडिवेदेति अहंण दंतवो अन्ने दंतवा जाव कालमासे कालं किच्चा अन्नयराई आसुरियाई किविसियाई जाव ग्ववत्तारो नवति त विप्पमुच्चमाणा नुको एलमुयत्ताए
तमोरुवताए पञ्चायति ते पाणावि वुच्चंति जाव णो णेयानए नव॥२॥ अर्थ-वली गौतम स्वामी कहे के,आ जगत्माहे कोइएक मनुष्य एवा दोय के,आरणि क एवं तीर्थविशेष तेने विषे रहेनार ते यारण्यवासी,तथा कंदमूलफलाहारी,दने मूलें वसनार एवा पुरुष,तापस विशेष जाणवा. (आवसहिया के०) वली कोइएक पानडानी पर्ण कूटी करी रहेनारा, ग्राम निमंत्रिक एटले बाजीविका निमित्तें ग्राम समा वसनारा,(क एहरिहस्सिया के०) कोइएक कार्यनें विषे रहस्यना करनार,इत्यादि तापस विशेष, जेनें विषे श्रमणोपासकनें व्रतग्रहण प्रारंजीने मरणांत सुधी हिंसानो निषेधले. हवे ते तीर्थक केवा ? तोके घणा संयत नथो,कारणके तेमांहे सम्यक ज्ञान नया; ते माटें ते पूर्ण संय मने जाणता नथो,तथा प्राण,जूत,जीव,अने सत्वने विषे जेने घणुं व्रतिपणु नथी. ते पोतें पोता थकी एवी सत्यामृषा नाषा प्रयुंजीने लोक बागल यावीरीते बोले.ते कहेले.मनें ब्राह्मण पणाने लीधे दमादिकें करी हणवो नहीं. बीजा हुड़ादिकोने हवा. इत्यादिक पूर्व अध्ययनने विषे कयुंडे,ते सर्व अंही जाणी ले. एवा मनुष्य,कालमासें काल करीने बालतपश्चर्याने योगें अनेरा बासुरिय किल्विषीयादिकनी गतिने विषे जाय. जे कारण माटें ते जीवघातना उपदेशना देनार,नोगानिलाषी, तापसो, नित्यांधकार सहित एवी नरकादि क गतिमाहे जाय. वली बालतपने योगें तेनें प्रथमतो पूर्वोक्त नीचगति प्राप्त थाय, ते वार पबी वली ते आसुरीयादिक गतिथकी घायुष्यने क्यें चवीनें वलो वली बेहेरा, मूगा, एवा तमोरूप अंध मनुष्य थाय. एवा बता तेने त्रस कहियें, तेने प्राण कहियें, इत्यादिक पूर्ववत् जाणवू. इत्यादिक यावत् ए तमारूं वचन न्यायमार्गनुं नथी ॥ २२ ॥
॥ दीपिका-किंचान्यत् एके मनुष्याएवंनताः स्युः धारण्यिकाधारण्यवासिनः श्रावसथि काग्रामनिमंत्रिकाः ( कण्दुरहस्सिया) क्वचित्कार्ये रहस्यकाः एते सर्वेपि तीर्थिक विशेषाः
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