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________________ राय धनपतसिंघ बाहारका जैनागम संग्रह नाग इसरा. बाहेर उद्यानां सायंकालें जतुं घने कोइ नगरमा रहेशे तेना शरीरनो निग्रह राजा करशे ते प्रमाणें राजानी उद्घोषणाथी सर्वे मनुष्य सायंकालें नगर बाहेर गयां, तथा राजा पण सपत्नीक गयो. हवे ते पडी, कोइ एक वैश्यना व पुत्र हता. ते क्रयविक्रय व्यापारना व्यग्रपणाथी नगरमांज रहि गया, एटलामां सूर्यास्त थयो तेवारें नगर बाहेर निकलवा लाग्या परंतु गोपुर जे नगरना दरवाजा, ते बंध थइ गया दीवा तेवारें न यत्रांत बता नगरमांहेंज कोई स्थले पोतें गुप्त रह्या पठी कौमुदी महोत्सव संपू f थया नंतर राजायें यारक्षकनें तेडावी कयुं के, यहो यारको ! तमें रूडी री तें कोइ पुरुष, नगरमा रहेलो होयतो तेनें जुवो ? तेवार पढ़ी नगरमा जोतां श्रेष्ठी ना व पुत्रो दीवा तेनें देखीनें, धारकोयें राजाने विनव्यो के, स्वामी ! कोई एक श्रेष्ठी ना पुत्र नगरमा रह्यावे. तेवारें राजायें ते बए पुत्रनो विनाश करवानें प्रादेश या प्यो. एवं सांजली श्रेष्ठी, पुत्रशोकें व्याकुल बतो राजापासें खावीनें एम कहेवा लाग्यो , हे स्वामी! मारा कुजनो दय म करो. नें जे कांई मारा घरमा कुल क्रमागत धन बे ते सर्व जेनें मारा बए पुत्रनें जीवता मूको ? ए प्रमाणे श्रेष्ठिये कहे यके, रा जा अत्यंत क्रोधें व्याप्त थयो थको, श्रेष्ठि प्रत्यें कहेवा लाग्यो के, अरे पापिष्ठ ! राजानी श्राज्ञा ते राजाना प्राणसमान! जेणें राजानी प्राज्ञा न मानी, तेणें राजानां प्राण हस्यां माटें तहारा पुत्र जीवता मूकुं नहिं. एवो राजानो घणो घाग्रह जाणीनें फरी श्रेष्ठी यें पांच पुत्रनें जीवता मूकवानी विनंति राजानें करी, तोपण राजायें मान्युं नहीं. ते वारें चार पुत्र मुकावनी विनती करी ते पण मानी नहीं, तेवारें त्रण पुत्र मुकाववानें विनति करतेपण राजायें मानी नहीं, तेवारें बे पुत्र मुकाववानी विनति करी, ते पण राजायें न मानी. एवो राजानो छाग्रह जाएगी श्रेष्ठीयें नगरमांहेला महोटा महोटा लोकोनें एकता की, ते बधानें राजापासें लइ जइने राजाने विनव्यो के, हेस्वामी ! त में प्रजाना पिता हो तो सर्वथा प्रकारें अमारा कुलनो दय करवा शुं मामचोबे ? यहिं यां प्रावेला मोनें तमेंज शरण हो एटले घमारे तमारोज याश्रय बे. तमने जावे तो मारो ? अने जावेतो जीवाडो ? एम कहि श्रेष्ठी राजानें पगे लागो ते वारें राजायें नुकंपा करीनें व पुत्रमांहेथी एक महोटा पुत्रनें जीवतो मूक्यो. ए इव्य थकी दृष्टांत कह्यो, दवे दृष्टांतनी योजना करेले के, जेम श्रेष्ठी तेम चाहिं श्रावक जाणवो, जेम त्यां व पुत्र तेम चाहिं बकाय जाणवा. जेम श्रेष्ठीयें विलाप करवाथकी रा जायें व पुत्र महेंथी एक पुत्र जीवतो मूक्यो, तेवारें श्रेष्ठी पोतानें कृतार्थ मान तो, एटले बीजा पांच पुत्रनी उपर श्रेष्ठीनें विनाश करवानो नाव नथी, परंतु शुं करे ! जे राजा कोइ रीतें मूके नहिं ? तेम यहीं पण साधु श्रावकनें संरक्षण Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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