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________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! से होंगे और हरे मैदान वहां की खेती-बाड़ी और जंगलों के होंगे। नहरों की संख्या बढ़ती जा रही है जिससे अनुमान होता है कि वहां के बाशिन्दे खेती - कास्त के लिये नहरें बढ़ा रहे होंगे । इस वक्त करीब ३५० नहरें भिन्न भिन्न स्थानों पर वहाँ देखी जा रही हैं। इन नहरों में कई नहरें चौड़ाई में करीब बीस बीस मील और लम्बाई में करीब ३५०० मील तक की दिखाई पड़ रही हैं, और बहुत सीधी और नियमानुकूल बनी हुई प्रतीत होती हैं, जिससे मालूम होता है कि वहां के बसनेवाले मनुष्य कलाकौशल में अति प्रवीण हैं । यह भी देखा गया है. कि सर्दी के समय जब ध्रुवों के पास बर्फ जमने लगती है तो यह नहरें पतली पड़ जाती हैं और गर्मी के दिनों में बर्फ गलने जहां पर कई नहरें मंगल के दो एक करीब ५८०० पर मोटी और चौड़ी होने लगती हैं । मिलती हैं वहां शाद्वल ( Cases ) दिखाई पड़ते हैं। इन नहरों के विषय में वैज्ञानिकों का कुछ मतभेद भी है। उपग्रह हैं जो मंगल के चौगिर्द परिक्रमा करते का व्यास लगभग ३५ मील का है तथा मंगल से मील की औसत दूरी पर है और ७३ घन्टे में मंगल की एक परिक्रमा कर लेता है । दूसरे का व्यास करीब १० मील का है तथा मंगल से १५६०० मील दूर है और ३० घन्टे में मंगल की एक परिक्रमा करता है। मंगल पर गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी की अपेक्षा कम है । जो वस्तु पृथ्वी पर १३ मन की होगी वह मंगल पर ३ मन से कुछ ऊपर होगी । मंगल का घनत्व भी ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only रहते हैं । www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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