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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
पृथ्वी की अपेक्षा करीब आधे से कुछ अधिक है और आकर्षण केवल एक तिहाई है ।
मंगल के पश्चात और बृहस्पति के पहिले एक कक्षा आवातर ग्रहों की है। आवान्तर ग्रह सैकड़ों की तादाद में हैं जो करीब पन्द्रह सौ तो देखे जा चुके हैं। आवान्तर ग्रहों का व्यास नीचे में ५ मील और ऊपर में ५०० मील तक का देखने में आता है। सूर्य से आवान्तर ग्रहों की दूरी लगभग २४ कोटि मील की है और परिक्रमा करते लगभग २२०० दिन लगते होंगे । आवान्तर ग्रहों के लिये माप और समय - औसत दरजे से दिया गया है ।
वृहस्पति
७.३
बृहस्पति का पिण्ड ग्रहों में सब से बड़ा है, जिसका व्यास ६२१६४ मील का है। दूरदर्शक यंत्रों से बृहस्पति का आकार अण्डे की तरह का दिखाई पड़ता है। पृथ्वी से बृहस्पति ३५६८१६००० मील की दूरी पर है और सूर्य ४८३२८८००० मील की दूरी पर। सूर्य की परिक्रमा करने में बृहस्पति को ४३३२ दिन लगते हैं । बृहस्पति को एक अक्ष-भ्रमण करने में १० घन्टे लगते हैं। बृहस्पति के पृष्ठ पर कुछ समानान्तर रेखाएँ दीख पड़ती हैं। एक ज्योतिषी ने कहा है कि बृहस्पति की मध्यरेखा के दोनों तरफ हजारों कोस चौड़ी लाल रंग के बादलों की मेखलाएँ फैली हुई हैं, जिनमें मध्य मेखला कभी तीघ्र नींबू के रङ्ग की या कभी लाल रंग की रहती है; और बीच बीच में श्वेत रंग के
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