________________
जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
मील की दूरी पर है, मगर जो कठिनाइयां हमें बुध को देखने में पड़ती हैं वे ही इसको देखने में भी पड़ती हैं, इसलिये इसके बाबत में भी बहुत थोड़ी बातें जानी जा सकती हैं। शुक्र का मार्ग भी पृथ्वी के क्रांति-वृत्त के भीतर है, और पृथ्वी की अपेक्षा सूय के निकट है, अतः शुक्र भी केवल प्रातःकाल और सायंकाल ही देखा जा सकता है। शुक्र का व्यास ७६०० मील का है और अपने अक्ष पर घूमने में इसको २२५ दिन लगते हैं। सूर्य की परिक्रमा करते हुए भी शुक्र को २२५ दिन लगते हैं, इसलिये शुक्र पर हमारे २२५ दिनों में एक दिन-रात होता होगा। शुक्र की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के अन्दर है, इसलिये बुध की तरह शुक्र में भी हमें कलाएं घटती बढ़ती दिखाई देती हैं। यानी चंद्रमा की तरह शुक्र भी रूप बदलता हुआ दिखाई पड़ता है। शुक्र पर वायु और जल का अभाव नहीं है, अतः वहां पर जीवधारियों का होना सम्भव है। शुक्र का पृष्ठ सदैव अत्यन्त घने बादलों से ढका रहता है, मगर कभी कभी वहां के कुछ पहाड़ दिखाई पड़ते हैं। शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है। शुक्र की कक्षा पृथ्वी के क्रांतिवृत्त के अन्दर है, इसलिये शुक्र भी जब बुध की तरह सूर्य के सामने आ जाता है तो रवि-शुक्र संक्रमण (Transit) होता है। और बिम्ब छोटा होने के कारण, बुध की ही तरह सूर्य के पृष्ठ पर छोटा सा काला चक्कर प्रतीत होने लगता है। गत रवि-शुक्र संक्रमण सन् १८८२ में हुआ था और आगामी काल में कुछ इस प्रकार होंगे-सन् २००४ की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org