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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
है । सामने के पृष्ठ पर निरन्तर भयानक गरमी और दूसरी तरफ भयानक शीत तथा एक तरफ निरन्तर दिन और दूसरी तरफ रात रहती है। बुध पर कुछ धब्बे और चिन्ह दीख पड़ते हैं, जिससे अनुमान होता हैं कि चन्द्रमा की तरह वहां भी पहाड़ और दरारें हैं। हमारी पृथ्वी से बुध पर गुरुत्वाकर्षण बहुत कम है । पृथ्वी पर जो वस्तु १३ मन की होगी, बुध पर ३ मन की ही रह जायगी। सूर्य की परिक्रमा करने में बुध को ८८ दिन लगते हैं, इसलिये बुध पर का वर्ष भी ८८ दिन का होता है । जिस प्रकार सूर्य और पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा के आ जाने से सूर्यग्रहण होता है, उसी प्रकार सूर्य और पृथ्वी के बीच बुध के आ जाने से भी रबि-बुध संक्रमण ( Transit) होता है । बुध का बिम्व इतना छोटा है कि इससे सूर्य ग्रहण तो नहीं होता मगर सूर्य के पृष्ठ पर बुध छोटा सा काला गोल चक्कर प्रतीत होने लगता है। इस प्रकार का रवि-बुध संक्रमण सन् १६२७ की १० मई को और सन् १६४० की १२ नवम्बर को हो चुका है, जिसको हमारे यहां के भी कुछ व्यक्तियों ने देखा है। गणित से जो रवि-बुध गमन कुछ आगामी काल के जाने हुए हैं, वे इस प्रकार हैं- सन् १९५३ की १३ नवम्बर, सन् १९६० की ६ नवम्बर, सन् १९७० की ६ मई, सन् १६७३ की ६ नवम्बर, सन् १६८६ की १२ नबम्बर
शुक्र
सूर्य से बुध के पश्चात् दूसरी कक्षा शुक्र की है। शुक्र सब ग्रहों से हमारी पृथ्वी के ज्यादा निकट है। पृथ्वी से शुक्र २३७०१०००
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