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जैन शास्त्रों को असंगत बातें !
की इस नामावली पर भी ध्यान पूर्वक विचार करने से यही अनुमान होता है कि केवल ग्रहों की संख्या अधिक दिखाने की नियत से इन ग्रहों की संख्या ८८ की गई है अन्यथा नामकरण का क्रम, “कण, कणक, कणकणक, कणवितांण, कण सतानिक, शंख, शंखनाभ, शंखवर्णाभ, कंश, कंशनाभ, कंश वर्णाभ," आदि की तरह घड़ा हुआ सा प्रतीत नहीं होता। ८८ ग्रहों की इस नामावली में मंगल, बुध, बृहस्पति शुक्र, शनि, राहु और केतु नाम भी आ गये हैं। केवल मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु की समभूमि से ऊँचाई को छोड़ कर सब ग्रहों का दूसरा दूसरा वर्णन जैन शास्त्रों में सब एकसा है जो इस प्रकार है। सूर्य और चंद्रमा की तरह इन ग्रहों के विमानों को भी, प्रत्येक के विमानों को ८००० देव उठाये आकाश में भमण कर रहे हैं जिनमें २००० देव पूर्व दिशा में सिंह का रूप किये हुए, २००० देव दक्षिण दिशा में हाथी का रूप किये हुए, २००० देव पश्चिम दिशा में बृषभ का रूप किये हुए २००० देव उत्तर दिशा में अश्व का रूप किये हुए हैं। इन ग्रह देवों के भी प्रत्येक के वही चार चार अग्रमहीषियां ( पटरानियां ) हैं और वैसी ही पटरानियों के परिवार की देवियां हैं जैसा सूर्य चंद्र के हैं । चार चार हजार सामानिक (भृत्य) देव सोलह सोलह हजार आत्म रक्षक (Body guard) देव और सात सात अनिका और अन्य स्व विमान वासी देव देवियां सपरिवार सब सेवा में हाजिर हैं। सब के मस्तक पर स्व स्व नामांकित मुकुट है, सब का
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