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________________ ४8 जैन शात्रों की असंगत बातें ! किसी भी कारण से हो सकता है-चाहे ज्ञान की वृद्धि से या ज्ञान की कमी से । पहली दृष्टि से हमें शास्त्रों की सत्यता स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं, यानी हम यह मान सकते हैं कि जिस शास्त्र-रचयिता ने भूगोल-खगोल सम्बन्धी जो बातें लिखी हैं, वे उसकी उस समय की दृष्टि के अनुसार सत्य थीं। पर अब कोई यदि यह कहे कि उसमें सार्वकालिक और सार्वभौमिक सत्य कहा हुआ है, तो हम उसे बुद्धि और ज्ञान की जड़ता तथा अंधश्रद्धा के सिवाय और कुछ नहीं मानेंगे। हम तो सवाल यह पूछते हैं कि आज हम अपने जीवन में भौगोलिक विषय में किस आधार पर चलते हैं ? यदि शास्त्रों में बताई हुई दृष्टि से हमारा आज काम नहीं चलता, तो वाजिब यही है कि हम अपनी दृष्टि में परिवर्तन करें, न कि जीवन में दूसरी बात पर चलते हुए भी केवल शास्त्र के अक्षर मानने की जिद्द कर अपने आप को हास्यास्पद बनावें। शास्त्र मनुष्य के ज्ञान के विकास के लिये लिखे गये थे, न कि उस पर बन्धन डालने के लिये। कुछ लोगों की और भी एक अजीब दलील इस सम्बन्ध में मालूम हुई है । वे कहते हैं कि जिस आधुनिक विज्ञान का सहारा लेकर शास्त्रों की बातों का असामंजस्य दिखलानेका प्रयत्न किया जा रहा है, वह स्वयं भी अपूर्ण और गति-शील है। इस तथ्य के समर्थन में एक सज्जन ने सर जेम्स जीन्स जैसे विश्वविश्रुत विज्ञान-बेत्ता के लेख के कुछ अंश उद्धृत किये हैं। उन पंक्तियोंको उद्भत करते समय लेखक शायद यह भूल गये कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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