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________________ सम्पादकीय टिप्पणी शास्त्रों की बातें ! इस शीर्षक की श्री बच्छराजजी सिंघी (सुजानगढ़ ) की लेखमाला 'तरुण' में मई के अंक से निकल रही है। उसके बारे में तरह तरह की चर्चा हुई है। कुछ-लोगों ने हमें यह लिखा है कि लेखक शास्त्रों पर आक्रमण कर रहा है, इसलिये इस तरह की लेखमाला को 'तरुण' में स्थान नहीं दिया जाना चाहिये। कुछ लोगों ने यह भी लिखा है कि भूगोल-खगोल का विषय हमारे जीवन के निर्माण और शोधन से बहुत ताल्लुक नहीं रखता, इसलिये इसको लेकर व्यर्थ ही ऊहापोह क्यों किया जाय ? इन आलोचकों ने, हमारी समझ में, लेखक का असली उद्देश्य समझने में गलती की है। लेखक का ध्येय शास्त्रों पर आक्रमण करने का नहीं-यद्यपि साधारण तौर से वैसा खयाल होता है-वरन् उस मनोवृत्ति पर आक्रमण करने का है जो किसी भी बात को शास्त्रों से समर्थन मिले बिना स्वीकार नहीं कर सकती तथा शास्त्रों की बातों की मान्यता और पालन में समय का सापेक्ष्य स्वीकार नहीं करती। हमारा खयाल यह है कि आदमी जिस समय जो बात कहता है, उस समय की उस की दृष्टि से तो वह सत्य ही होती है, लेकिन दूसरे मौके पर उस दृष्टि में परिवर्तन हो जाने के कारण वह असत्य हो जा सकती है। यह परिवर्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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