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जैन शास्त्रों की असंगत बातें! ।
उनकी बात ठीक इसलिये नहीं है कि सर जेम्स जो कहते हैं, वह उनके शास्त्र नहीं कहते । सर जेम्स के शब्दों में तो एक विज्ञान वेत्ता की प्रणाली का पूरा प्रतिपादन है। सच्चा वैज्ञानिक किसी वस्तु को अन्तिम नहीं मानता , इसलिये उसकी शोध जारी रहती है। विज्ञान विज्ञान ही इसलिये है कि उसकी ज्ञान की भूख मिटी नहीं है। शास्त्रों में आए हुए वर्णनों को सर्वज्ञ के वचन बता कर उससे रत्ती भर भी इधर-उधर विचार करने में ही जिन्हें अपनी धर्म-साधना खंडित हुई लगती है, वे अपनी ओर से अपनी बातों के समर्थन के लिये पेश किये हुए सर जेम्स जीन्स के इस वाक्य को फिर पढ़े और उस पर गहराईसे विचार करें-"जो कुछ कहा गया है और जितने निर्णय विचारार्थ पेश किये गये हैं, वे सब स्पष्टतया अनुमानजनित और अनिश्चयात्मक हैं।” इन शब्दों में सच्चे वैज्ञानिक की दृष्टि है। अगर सब कुछ कहने के बाद शास्त्र भी ऐसी ही बात कहते हों तो सर्वज्ञ को बीच में डाल कर विवाद करने की जरूरत नहीं और वे ऐसा नहीं कहते हों, तो उनमें कम से कम वैज्ञानिक दृष्टि तो नहीं माननी चाहिये। इसलिये, श्री किशोरलाल घ० मशरूवाला के शब्दों में मैं कहूंगा “शास्त्रों की मर्यादा को समझ कर अगर हम उनका अध्ययन करें तो वे हमारे जीवन में सहायक हो सकते हैं। नहीं तो वे जीवन पर भार रूप हो जाते हैं और फिर न केवल कबीर जैसों को ही, वरन् ज्ञानेश्वर सरीखों को भी उनकी अल्पता बतलानी पड़ती है।"
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