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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
खोला जाय तो ढकते और खोलते समय जो जो शकलें चमकते हुए श्वेत चक्कर की बनेंगी, जैन शास्त्रों के बताये अनुसार ठीक वैसी शकले चंद्रमा की दिखाई देनी चाहिये मगर ढकाई के समय शेष के दो तीन दिन और खुलाई के समय शुरुआत के दो तीन दिन ( सो भी यथार्थ नहीं ) के सिवाय बाकी के सब दिनों में वैसी शकले किसी समय नहीं बनतीं । राहु के विमान की उस तरफ की गोलाई जिस तरफ चन्द्रमा के विमान के भाग को ढकती रहती है अपनी गोलाई को मिटाती हुई सीधी लम्बी बन कर विपरीत दिशा में हो जाती है * । है सर्वज्ञों की सूझ | चन्द्रमा के योजन के व्यास के चमकते हुए गोल चक्कर पर कलाएँ दिखलाने के लिये राहु के गोल काले विमान के व्यास की ( दो कोस के विमान की कल्पना करके तो मूर्खो के सामने भी हास्यास्पद बनना है ) आधे योजन की कल्पना करने में उसके होने वाले असर को विचारने में एक साधारण दिमाग जितना भी काम नहीं लिया गया ।
यह
कभी कभी कृष्ण पक्ष में या शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा के गोल पिन्ड का कुछ भाग धन्वाकार चमकता हुआ प्रकाशवान और शेष भाग अत्यन्त धुंधला दिखाई पड़ता है । चन्द्रमा के इस धुंधले भाग पर सूर्य का प्रकाश सीधा नहीं पड़ता परन्तु पृथ्वी
यह प्रसंग चित्र देकर जितना स्पष्ट समझाया जा सकता है, उतना केवल भाषा से नहीं । मगर समझने के लिये भाषा को सरल बनाने का यथा साध्य प्रयत्न किया है ।
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