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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
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केवल एक छोटी सी काली टिकड़ी के मानिन्द दिखाई पड़ेगा। जीवाभिगम सूत्र के कथनानुसार यदि राहु के विमान को आधे योजन का यानी २००० माइल के व्यास का मान कर चन्द्रमा के ३६७२६६ माइल के प्रकाशवान व्यास में २००० माइल के व्यास का राहु का काला चक्कर बीच में लगा कर देखें तो ३६७२६६ माइल का चमकता हुआ प्रकाशवान घेरा २००० माइल के राहु के काले घेरे के चौतरफ चमकता हुआ बाकी रह जायगा। मगर हमें अमावश्या को जो दिखाई दे रहा है, वह सर्व विदित है यानी प्रकाश कतई दिखाई नहीं देता। राहु का यह विमान यदि चन्द्रमा से बहुत दूर हमारी पृथ्वी की तरफ बतला देते तो २००० माइल का काला गोल चक्कर ३६७२ माइल के प्रकाशवान गोल चक्कर के सामने आकर हमें चन्द्रमा को ढक कर दिखा देता मगर जीवाभिगम सूत्र में राहु का बिमान चन्द्रमा के विमान से चार अङ्गुल नीचे चलता है, यह कह कर इसकी भी रांत काट दी यानी गुञ्जाइश नहीं रहने दी। यह है सर्वज्ञता के व्यावहारिक ज्ञान का नमूना। चन्द्र विमान के १५ भाग किये हैं जिनमें से एक एक भाग प्रति दिन राहु का विमान कृष्णपक्ष में ढकता रहता है और शुक्लपक्ष में खोलता रहता है। राहु और चन्द्रमा इन दोनों के विमान गोल शकल के हैं। एक श्वेत चमकते हुए गोल चकर को दूसरे काले वैसे ही गोल चक्कर से ( व्यास के १५ भाग बना कर एक एक पर) १५ दफा ढका जाय और उसी तरह वापिस
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