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जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! कृष्ण और शुक्ल पक्ष के लिये होने वाली चन्द्रमा की कलाओं के बाबत सर्वज्ञों ने ध्रुव राहु की कल्पना करके इस मसले को जैसे हल करने का मिथ्या प्रयास किया है, उस पर विचार करने से तो यह साबित हो रहा है कि व्यावहारिक ज्ञान भी शायद ही काम में लाया गया हो। चन्द्रदेव का विमान १६ योजन यानी ३६७२६८ माइल लम्बा चौड़ा गोलाकार और ध्रुव राहु का विमान दो कोस यानी ४ माइल लम्बा चौड़ा बतलाया है। इस राहु ग्रह के विमान के माप के बावत जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के ज्योतिषी चक्राधिकार में लिखा है "दोकोसेयगहाण" यानी ग्रह का दो कोस का विमान है और जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति में लिखा है "ग्रह विमाणेवि अद्ध जोयण” यानी ग्रह का विमान आधे योजन का है। इस प्रकार दोनों सूत्रों में भिन्न भिन्न कथन हैं जो सर्वज्ञता के नाते कतई नहीं होना चाहिये। कहीं कुछ और कहीं कुछ कह देना सर्वज्ञता नहीं बल्कि अल्पज्ञता का द्योतक है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के कथनानुसार राहु के विमान का व्यास यदि हम दो कोस यानी चार माइल का मान लें तो चंद्रमा के ३६७२६६ माइल के व्यास के विमान के मुकाबिले में ( दोनों का गोलाकार होने की वजह से ) अमावश्या की रात को राहु का विचारा छोटा सा विमान चन्द्रमा के बहुत बड़े विमान को ढक तो क्या सकेगा (यानी नहीं ढक सकेगा) परन्तु चन्द्रमा के चमकते हुए प्रकाशवान विमान के बीच में
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