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________________ जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि The Nautical Almanac की सब प्रतियां (जब से इसका प्रकाशन प्रारम्भ हुआ है ) मंगाई जाकर देखी जायँ तो अनेक ग्रहण ऐसे मिलेंगे जो ६ मास से पहले हुए हैं और जैन शास्त्रों के बताये हुए जघन्य अन्तर काल को असत्य साबित कर रहे हैं। अन्वेषणों से यह साबित हुआ है कि एक वर्ष में ५ सूर्य ग्रहण और दो चन्द्र ग्रहण हो सकते हैं और प्रत्येक १८ वर्ष २२८ दिन ६ घन्टे के पश्चात् सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण फिर पहिले के क्रम से होने लगते हैं। सर्वज्ञों ने कहा है कि सूर्य ग्रहण का उत्कृष्ट यानी ज्यादा से ज्यादा अन्तर-काल पड़े तो ४८ वर्ष का पड़ सकता है। वर्तमान विज्ञान के कथनानुसार प्रत्येक १८ वर्ष २२८ दिन ६ घन्टे पश्चात् सूर्य और चन्द्र ग्रहण फिर पहिले के क्रम से होने लगते हैं तो इन सर्वज्ञों का सूर्य ग्रहण के उत्कृष्ट अन्तर काल का ४८ वर्ष बतलाना सर्वथा असत्य साबित होता है। सर्वज्ञ और अनन्त ज्ञानी कहलाने वालों के वचन यदि इस प्रकार प्रत्यक्ष के सामने असत्य साबित हो रहे हैं तो शास्त्रों की अक्षर अक्षर सत्यता का मोह रखने वाले सज्जनों को चाहिये कि अपने विचारों को अच्छी तरह प्रमाण की कसौटी पर कस कर देखें अथवा सत्यता को साबित करके दिखावें। यह तो हुई ग्रहणों के जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर-काल बतलाने के सम्बन्ध की बात। अब मैं चन्द्र और राहु के बाबत की शास्त्रीय कल्पना के सम्बन्ध में भी कुछ विचार उपस्थित करूं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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