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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
हैं। लोक आकाश और अलोक आकाश । इस लोक आकाश में असंख्य सूर्य और असंख्य चन्द्र हैं जिनमें अढ़ाई द्वीप तक जहां तक कि मनुष्यों की आबादी का सम्बन्ध है, १३२ सूर्य और १३२ चन्द्र बताये हैं । सर्व प्रथम हम सूर्य का ही वर्णन करेंगे। जैन शास्त्रों में जम्बू द्वीप में हमारे यहां पर दो सूर्य प्रकाश का काम करते हुए बताये गये हैं जिनके बाबत मेरे गत लेखों में लिखा ही जा चुका है । हमारे यहां की वर्त्तमान स्थिति से स्पष्टतया एक ही सूर्य का होना साबित हो रहा है । इसलिये दो सूर्य का बतलाना असत्य है । हमारे इस सूर्य को जैन शास्त्रों में पृथ्वी से ८०० योजन यानी ३२००००० (बत्तीस लाख) माइल ऊँचा बताया है और यह भी बताया है कि सूर्य का एक गोलाकार विमान है जिसकी लम्बाई व योजन यानी ३१४७६१ माइल और चौड़ाई भी इतनी ही और मोटाई योजन यानी १८३६ माइल की है। इस विमान का नाम सूर्यावतंसक विमान है जिस को १६००० देव सर्वदा उठाये हुए आकाश में भ्रमण कर रहें हैं । इन १६००० देवों का रूप इस प्रकार बताया है कि ४००० देव पूर्व दिशा में सिंह का रूप किये हुए, ४००० देव दक्षिण दिशा में हाथी का रूप किये हुए, ४००० देव पश्चिम दिशा में वृषभ का रूप किये हुए और ४००० देव उत्तर दिशा में अश्व का रूप किये हुए हैं । सूर्य देव के चार अग्रमहिषी यानी पटरानियां हैं, और एक एक पटरानी के चार चार हजार देवियों का परिवार है। इस
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