SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'तरुण जैन' अगस्त सन् १६४१ ई० खगोल वर्णन गतांक में मैंने वादा किया था कि अगले लेख में खगोल के विषय में लिखूंगा । उसी वादे के अनुसार इस लेख में जैन शास्त्रों के खगोल विषय का कुछ वर्णन करूंगा। मैंने यह पहिले ही कहा है कि मेरे खयाल से जैन शास्त्रों में भी असत्य, असम्भव और अस्वाभाविक कल्पनाएँ बहुत हैं । मेरा उद्देश्य यही है कि उनमें से कुछ नमूने के तौर पर इन लेखों द्वारा जैन जगत् के सामने रखकर समाधान कराने का प्रयत्न करूँ । मेरे तीन लेख 'तरुण जैन' के गत तीन अङ्कों में निकल चुके हैं मगर जैन कहलाने वाले उन विद्वान सज्जनों ने जिनको शास्त्रों की अक्षर अक्षर सत्यता पर मोह है, अभी तक उन लेखों से असत्य साबित होने वाले प्रसंगों के समाधान करने का प्रयास नहीं किया । मैं आशा करता हूं कि अब भी वे सत्य को साबित करने में और समझाने में प्रयत्नशील होंगे। खगोल में सूर्य, चन्द्र, ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, तारे आदि की आकाश-मण्डल में गति, स्थिति, संस्थापन, दूरी व पारस्परिक आकर्षण आदि का वर्णन होता है । जैन शास्त्रों में इस अनन्त आकाश के दो भाग कर दिये गये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy