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जैन शास्त्रों को असंगत वातें !
वर्तमान भूगोल जैसे दो पिन्ड समा सकते हैं मगर अशास्वत माप के हिसाब से देखें तो भी ६६ माइल लम्बी और ७२ माइल चौड़ी यानी ६६१२ वर्गमील की बड़ी नगरी हो जाती है। कल्पना की भी कोई हद होती है। पर्वत, समुद्र, नदियां, नगर आदि के इन लम्बे चौड़े मापों के आंकड़ों को बताते हुए इस बीसवीं सदी में जी तक नहीं चाहता मगर क्या करें शास्त्रों के अमृत वचनों की सत्यता की तलाश में उझड़ भटक कर भी यदि सत्यता निकाली जा सके तो मानव-जाति का बड़ा भारी उपकार होगा।
इस लेख के साथ मेरी भौगोलिक विषय सम्बन्धी चर्चा समाप्त होती है। एक ही विषय पर लगातार लिखना रुचिकर प्रतीत नहीं हो सकता, अतः अगले लेख में खगोल पर लिखूगा। भूगोल सम्बन्धी इन तीन लेखों में मैंने यह बताने का प्रयास किया है कि शास्त्रो की बातों में सत्य का कितना अंश होता है। जिन लोगों को शास्त्रों की हरेक बात की सत्यता पर विश्वास है और जो आदमी विचारपूर्वक यह समझते हैं कि शास्त्रों के बचनों में किसी प्रकार की असत्यता नहीं हो सकती, उन्हें अविलम्ब मेरे लेखों की बातों का समाधान करने का प्रयास करना चाहिये जो जैन शास्त्रों की बातों को गलत साबित कर रही है।
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