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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
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प्रकार यह १६००४ देवियां हैं। सूर्य देव की इन पटरानियों के नाम इस प्रकार बताये हैं- सूर्यप्रभा, अर्चिप्रभा, अर्चिमालिनी और प्रभंकरा । इन १६००४ देवियों के साथ नाना प्रकार के भोगोपभोग भोगते हुए सूर्य देव विचरण कर रहे हैं । सूर्य देव रात-दिन भ्रमण कर रहे हैं और भ्रमण करने में ही सुख अनुभव कर रहे है। इन शास्त्रों के अनुसार सूर्य देव का हुलिया सुनिये । उनके मुकुट में सूर्यमण्डल का चिन्ह है और उनका वर्ण तप्त स्वर्ण जैसा दिव्य है। सूर्य देव के ४००० सामन्तिक देव यानी भृत्य वर्ग सर्वदा सेवा में तत्पर रहते हैं और १६००० देव उनके आत्मरक्षक यानी Body Guards हैं। सूर्य देव की, हाथी, घोड़ा, रथ, महेप, पैदल, गंधर्व, नृत्यकारक यह सात अनिकाएँ हैं जिनकी संख्या ५८०००० से बतलाई गई है। सूर्य देव की सम्पत्ति चन्द्र को छोड़कर ज्योतिषी देवों में सब से अधिक है, अलबत्ता सूर्यदेव से चन्द्र देव महा सम्पत्तिशाली हैं । जैन शास्त्रों में सूर्य - भ्रमण के १८४ मण्डल बताये गये हैं जिनमें जम्बू द्वीप में ६५ मंडल की कल्पना की है। हमारी वर्तमान भूगोल सब इस जम्बू द्वीप में ही मानी जा रही है । इन १८४ मंडलों पर भ्रमण करते हुए सूर्य द्वारा भिन्न भिन्न समय में होने वाले अहोरात्रि ( दिन रात ) को भिन्न भिन्न प्रकार से बड़े छोटे बतलाये हैं परन्तु बड़े से बड़े दिन को १८ मुहूर्त यानी १४ घन्टे २४ मिनट तथा बड़ी से बड़ी रात्रि को १८ मुहूर्त यानी १४ घन्टे २४ मिनट और छोटे
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