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जैन शात्रों की असंगत बातें ! ।
की है जिसकी परिधि ३१६२३० योजन यानी १२७६४१००० माइल करीब की है। इस मेरु पर्वत के ऊपर का जो सुरम्य और विस्तृत वर्णन है, वह देखते ही बनता है मगर उसका बयान कर इस लेख के उद्देश्य से बाहर जाकर लेख का मैं कलेवर बढ़ाना नहीं चाहता। ऊँचाई-चौड़ाई सर्व पर्वतों से ज्यादा इस मेरु पर्वत की है परन्तु जैन शास्त्रों के छोटे पर्वत भी हजारों लाखों माइलों से कम ऊँचाई के नहीं हैं। समुद्रों के लम्बे-चौड़े वर्णन तो आप गतांक में पन्नवणा सूत्र की तालिका से देख ही चुके हैं। योजनों को २००० से गुणा करते जाइये, प्रत्येक समुद्र के कोस निकलते जायँगे मगर वहां तो शेष में असंख्यात योजनों की कल्पना ने २००० से गुणा करके कोस बनाने के कष्ट उठाने की गुञ्जाइश ही नहीं रहने दी।
शास्त्रों में बताई हुई महाविदेह क्षेत्र की सीता और सीतोदा नाम की महा नदियों की लम्बाई तो दरकिनार रखिये, केवल चौड़ाई ही पांच पांच सौ योजन यानी बीस बीस लाख माइल की बताई गई है। इन बड़ी बड़ी नदियों को जाने दीजिये, हमारे भारत क्षेत्र ( जिसमें हम आबाद हैं) में बहने वाली गंगा नदी जो चुल्ल-हेमवन्त पर्वत के पद्म द्रह से निकल कर लवण समुद्र में जा कर गिरी है, पद्म द्रह के पास ६१ योजन यानी १२५०० कोस की चौड़ी है और लवण समुद्र के पास ६२३ योजन यानी १२५००० कोस चौड़ी है। इस गंगा नदी
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