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________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! २११ जब उनसे पूछा जाता है कि तुम्हारे भगवान् सच्चे क्यों ? तो वे उत्तर देते हैं कि उनके वचन सच्चे हैं । परन्तु जब पूछा जाता है कि बचन सच्चे कैसे माने जायँ ? तो कहते हैं- “ तर्क से परीक्षा करलो" । वे आजकल के मूर्ख पंडितों के समान वचनों की प्रमाणताके लिये भगवान् की दुहाई देकर, अन्योन्याश्रयके फंदे में नहीं आते बल्कि तर्कके वजदण्डसे अन्योन्याश्रय चक्रक और अनवस्थाका कचूमर निकाल देते हैं । इससे मालूम होता है कि आप्त और आगमका मूल आधार या रक्षक तर्क है। सोना बहुमूल्य भले ही हो परन्तु उसकी बहुमूल्यता की चोटी कसौटी के हाथमें है। तर्कके बल पर ही हम जैन धर्म को सर्वोत्तम धर्म ओर वीरवाणीको सर्वोत्तम आगम कह सकते हैं । अगर तर्कका सहारा छोड़ दिया जाय तो आगमका और आप्तका कुछ मूल्य नहीं रहता । जब समन्तभद्रने आगम का स्वरूप बतलाया तब यह नहीं कहा कि द्वादशांगवाणी या अमुक ग्रन्थोंको शास्त्र कहते हैं । उनने तो यही कहा कि “आप्तोपज्ञमनुल्लंघ्यमदृष्टेट विरोधकम् । तस्त्वोपदेशकृत्सा शास्त्रं कापथ घट्टनम् " || "जो आप्त ( यथार्थ वक्ता ) का कहा हुआ है, जो सबके मानने योग्य है, प्रत्यक्ष और अनुमानादिसे जिसमें विरोध नहीं आता अर्थात् जो युक्ति सङ्गत है, जो यथार्थ वस्तुका प्रतिपादक है, सबका हित करने वाला है, और मिथ्यामार्गका नाशक है, वही शास्त्र है" । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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