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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
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अगर
बोलेगा ? इस पर कोई कहे " महावीर ही वीतराग सर्वज्ञ थे, बुद्ध वीतराग सर्वज्ञ नहीं थे, यह बात कैसे मानी जाय ?" तो अन्तमें उत्तर मिलेगा कि “शास्त्र में लिखा है" । यह तो अन्योन्याश्रय दोष हुआ । क्योंकि शास्त्र तबसच्चे माने जायँ जब महावीर सच्चे सिद्ध हों और महावीर तब सच्चे माने जायँ जब शास्त्र सच्चे सिद्ध हों । इसलिये शास्त्र न तो अपनी प्रमाणता सिद्ध कर सकते हैं, न अपने उत्पादक की । वे स्वतः प्रमाण माने जायँ तो दुनिया भर की सभी पोथियाँ प्रमाण हो जावंगी । ऐसी हालत में जैनशास्त्रों में कोई विशेषता न रहेगी। इसके अतिरिक्त एक दूसरा प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि शास्त्रों के नाम पर जो वर्तमानमें जैनसाहित्य प्रचलित है उसमें कौनसी पुस्तक भगवान् महावीरकी बनाई हुई है ? एक भी पुस्तक ऐसी नहीं है जो महावीर रचित हो । यहाँ तक कि भगवान् महावीरके पाँच सौ वर्ष पीछे की भी कोई पुस्तक नहीं मिलती । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित ३२ या ४५ सूत्रग्रंथ महावीर स्वामीके शिष्य गौतम गणधर रचित बताये जाते हैं, परन्तु इनकी भाषा भगवान् के समय की भाषा नहीं है । यह महाराष्ट्री प्राकृत है, इसमें मागधीका सिर्फ़ एकाध ही प्रयोग है। दूसरी बात यह है कि जैनशास्त्रोंके अनुसार भगवान के १६२वर्ष पीछे तक उनका उपदेश पूर्णरूप से सङ्कलित रहसका ; इसके बाद तो लुप्त होने लगा और उसमें बाहिरी या सामयिक साहित्य भी मिलने लगा । करीब हजार
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