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________________ 'जैन जगत्' १ अक्टूबर सन् १९३० ई० शास्त्र और तर्क दुनियाँमें शास्त्र इतने ज़्यादः और विविध हैं कि अगर मनुष्य शास्त्रोंके आधार पर निर्णय करना चाहे तो वह मरते दम तक किसी बातका निर्णय न कर सकेगा। सभी शास्त्र अपना सम्बन्ध ईश्वर या उसीके समान किसी परमात्मा या ऋषिसे बतलाते हैं, और प्रायः सभी एक दूसरेके निन्दक हैं। ऐसी हालतमें जब लोग शास्त्रों पर ही निर्णयका सारा बोझ डाल देते हैं तब उनके पागलपन पर हँसी आती है या उनकी मूर्खता पर आश्चर्य होता है। बहुतसे पढ़े लिखे और पंडित कहलानेवाले लोगोंमें भी यह पागलपन और मूर्खता पाई जाती है, परन्तु इससे सिर्फ इतना ही सिद्ध होता है कि बहुतसे लोग पढ़ लिख जाने पर और पंडित हो जाने पर भी पागल और मूर्ख बने रहते हैं। ___ हमारे बाप दादे जैनी थे, इसलिये हम भी जैनी बन गये हैं। बने क्या ? बना दिये गये हैं। अगर हमसे कोई पूछे कि "तुम अपने शास्त्रोंका ही विश्वास क्यों करते हो ? वेद कुरान, बाइबिल और पिटकत्रयका विश्वास क्यों नहीं करते ?" तो उत्तर मिलेगा कि "हमारे शास्त्र भगवान् महावीरके बनाये हुए हैं, वे वीतराग और सर्वज्ञ थे, कषाय और अज्ञानतासे ही मनुष्य झूठ बोलता हैं, जिसमें ये दोनों नहीं हैं वह झूठ क्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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