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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
की कसौटी में कोई संशय नहीं रह सकता । अभिधान राजेन्द्र कोषकार के अनुसार कर्मग्रन्थ में लोक के माप के सम्बन्ध में यों लिखा है
“चउदस रज्जू लोओ, बुद्धिकओ होई सत्त रज्जू घणो । ” किन्तु उक्त माप सिद्ध न होने से सही कैसे मान लिया जाय ? जब कितने ही जैन विद्वानों के सामने यह विरोधाभास रक्खा गया तो उन्होंने या तो केवल - ज्ञानियों के जिम्मे इसका निराकरण रख कर बात खतम कर दी; या उल्टे प्रश्न करने वाले को कहा कि ऐसा तरीका निकालो जिससे ३४३ घन रज्जू सिद्ध हो जाय । पता नहीं, ऐसे मोटे प्रश्नों को इतनी उपेक्षा की दृष्टि से क्यों देखा जाता है ? सत्य के साधकों को किसी भी प्रकट सत्य को स्वीकार करने में हिचकिचाहट क्यों ? आशा है कोई विज्ञ महानुभाव इस विरोधाभास के सम्बन्ध में अपनी सम्मति प्रकट करेंगे जिससे वस्तुस्थिति का पता चल सके ।
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