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२०६ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! होता है। उक्त रीति से निकाले गये कथित तीनों आकारों के क्षेत्रफल क्रमशः निम्न हैं :
नं० १-१६१२६८८ घन रज्जू नं० २–२०५३ घन रज्जू नं० ३–३४३ धन रज्जू
शास्त्रोक्त लोक-वर्णन को देखते हुये नं० २ और ३ के आकार में निम्न विरोधाभास उपस्थित होते हैं, अतः वे मान्य नहीं हो सकते :
नं. १
(अ) मध्य में लोक एक रज्जू समचतुष्कोण रहता है।
किन्तु द्वीप समुद्रों को वलयाकार मानने से अन्तिम स्वयंभू रमण समुद्र बाहर की तरफ से चतुष्कोण ठहरता है जो शास्त्रसंगत नहीं है।
न०२
(अ) मध्य में लोक चारों तरफ से एक रज्जू नहीं रहता है। (ब) मध्य में एक और एक एवं दूसरी और सात रज्जू रहने
पर अनुक्रम से चारों तरफ से घटने वाली बात युक्तियुक्त नहीं बैठती। अंग्रेजी में एक कहावत है कि Numbers speak of themselves अर्थात् आंकड़े स्वयं बोलते हैं। अपितु गणित
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