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जैन शास्त्रों को असंगत बातें !
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- नं. १ में स्थान अ-७ रज्जू वृत्ताकार, ब-एक रज्जू वृत्ताकार, स-५ रज्जू वृत्ताकार और द-एक रज्जू वृत्ताकार है।
नं०२ में स्थान अ-७ रज्जू वर्गाकार ( square ), ब-- एक रज्जू वर्गाकार, स–५ रज्जू वर्गाकार और द-एक रज्ज वर्गाकार है।
नं. ३ में स्थान अ-७ रज्जू वर्गाकार ब-१४७ रज्जू लम्बाकार (oblong ), स-५४७ रज्जू लम्बाकार और द१४७ रज्जू लम्बाकार है। ___ नं. १ के आकार को ही मान्य समझा जाता है और उसे ही ३४३ घन रज्ज बताते हैं।
उक्त तीनों आकारों का धन रज्जू निकाल कर हम देखें कि इनमें कितना अन्तर मिलता है। किसी भी समचतुष्कोण या गोल पिण्ड अथवा खात, जिसके मुख और तल का क्षेत्रफल भिन्न हो और ऊंचाई समान हो, का घनफल इस प्रकार
या गहराई निकलता है
मुखका क्षेत्रफल+तल का क्षेत्रफल+मुख तल की लम्बाई चौड़ाई का संयुक्त क्षेत्रफल ६x_ ऊँचाई =पिण्ड या खात्र
hi या गहराई का घनफल।
नोट-वृत्त का क्षेत्रफल उसके व्यास के क्षेत्रफल का . ७८५४
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