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________________ जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! २०५ - नं. १ में स्थान अ-७ रज्जू वृत्ताकार, ब-एक रज्जू वृत्ताकार, स-५ रज्जू वृत्ताकार और द-एक रज्जू वृत्ताकार है। नं०२ में स्थान अ-७ रज्जू वर्गाकार ( square ), ब-- एक रज्जू वर्गाकार, स–५ रज्जू वर्गाकार और द-एक रज्ज वर्गाकार है। नं. ३ में स्थान अ-७ रज्जू वर्गाकार ब-१४७ रज्जू लम्बाकार (oblong ), स-५४७ रज्जू लम्बाकार और द१४७ रज्जू लम्बाकार है। ___ नं. १ के आकार को ही मान्य समझा जाता है और उसे ही ३४३ घन रज्ज बताते हैं। उक्त तीनों आकारों का धन रज्जू निकाल कर हम देखें कि इनमें कितना अन्तर मिलता है। किसी भी समचतुष्कोण या गोल पिण्ड अथवा खात, जिसके मुख और तल का क्षेत्रफल भिन्न हो और ऊंचाई समान हो, का घनफल इस प्रकार या गहराई निकलता है मुखका क्षेत्रफल+तल का क्षेत्रफल+मुख तल की लम्बाई चौड़ाई का संयुक्त क्षेत्रफल ६x_ ऊँचाई =पिण्ड या खात्र hi या गहराई का घनफल। नोट-वृत्त का क्षेत्रफल उसके व्यास के क्षेत्रफल का . ७८५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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