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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
लगे। मैंने बन्दना नमस्कार, खमत खामणा करते हुए अपना रास्ता लिया। रास्ते में श्री शिवचंदजी कहने लगे कि आपने बहुत शान्ति दिखाई। मैंने कहा-जैन शास्त्रों में परिवर्तन कराकर विकार हटा सकने की मैंने आशा लगा रखी है। अभी तो बहुत से जैनाचार्यों से बात करनी हैं। गरम होने से कैसे काम चलेगा। इसके पश्चात् तारीख १३ अगस्त सन् १९४४ मिती भादवा बदि १० सं० २००१ को जैनश्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय के आचार्य श्री तुलसीरामजी महाराज से सुजानगढ़ में वार्तालाप हुआ जो इस प्रकार है:-बन्दना नमस्कार कर सुख साता पूछने के पश्चात् मैंने अर्ज की कि आप आज्ञा फरमा तो मैं जैन शास्त्रों के विषय में कुछ निवेदन करना चाहता हूं तो श्री जी महाराज ने फरमाया कि पूछो। मैने कहा आप तो जैन शासन के एक मालिक हैं और मैं जैनका तुच्छ सेवक हूं। मनुष्य के रहने के लिये मकान जिस प्रकार आधारभूत होता है उसी प्रकार जैन शास्त्र भी हमारे अध्यात्म के लिये आधारभूत हैं। मकानमें जिस प्रकार धूला-कूड़ा करकट इकट्ठा हो जाता है उसी प्रकार जैन शास्त्रों में भी विकार आ गया है। सेवक के नाते मेरी अजे है कि शास्त्रों में आये हुए इस विकार को आप हटवावें। भूगोल, खगोल, गणित आदि नाना विषयों में जैन शास्त्रों की बताई हुई बातें प्रत्यक्ष में असत्य प्रमाणित हो रही हैं। यों तो लोगों की श्रद्धा स्वतः ही कम होती जा रही है फिर जब यह प्रत्यक्ष की असत्य बातें दिखाई देंगी तो शास्त्रों
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