________________
जैन शास्त्रों को असंगत बातें !
१८७
हुआ कि इस स्थान में जो यह मांसों के नाम दिखाई देते हैं वे मांस नही हैं परन्तु बनस्पतियों के नाम हैं। तब से इन नामों के विषय में अन्य सम्प्रदाय के किसी विद्वान् संत- मुनिराज से पूछकर निश्चय करने की मेरी इच्छा थी । कार्यबलात् तारीख १२ जुलाई सन् १६४४ श्रावण बदि ७ सं० २००१ को मैं बीकानेर गया। वहां पर मेरे मित्र श्री मंगलचन्दजी शिवचन्दजी साहब झाबक से मिला तो श्री शिवचन्दजी साहब ने मुझसे कहा कि आजकल यहांपर जैनाचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिजी महाराज विराजते हैं। बड़े उच्च कोटि के विद्वान हैं और जैन शास्त्रों के तो अद्वितीय पण्डित हैं। आप उनके दर्शन करें और जैन शास्त्रों के विषय में कुछ पूछना हो तो पूछें । मैंने सोचा यह बहुत सुन्दर संयोग मिला है इस अवसर का लाभ अवश्य उठाना चाहिये। श्री शिवचन्दजी साहब के साथ मैं श्री आचार्य महाराज के पास उपस्थित हुआ । उनके पास बहुत से पंजाबी और कुछ बीकानेरी श्रावक बैठे हुये थे । शिष्टाचार के अनुसार बन्दना - नमस्कार कर सुखसाता पूछकर मैं भी बैठ गया । श्री शिबचन्दजी साहव ने आचार्य महाराज के समक्ष मेरा परिचय देना प्रारम्भ किया कि यह सुजानगढ के बच्छराजजी सिंघी हैं, मन्दिरपंथी हैं, सुजानगढ का भव्य मन्दिर इन लोगों का ही बनवाया हुआ है और 'तरुण जैन' में शास्त्रों की बातें शीर्षक जैन शास्त्रोंके विषय में इनके ही लेख निकलते थे। इस प्रकार परिचय समाप्त होते ही आचार्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org