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जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! आवश्यकता है वर्तमान संसारके विकास पाये हुए अनुभव तथा विज्ञानकी जानकारी और शुद्ध विवेक एवम् निर्मल बुद्धिके साथ अदम्य साहस की। इसके लिये सब से सरल योजना यह है कि जैन कहलाने वाले बड़े बड़े विद्वान् एवम् आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के अनुभवी मनीषियों की एक महती परिषद स्थापित हो और उसके द्वारा इन शास्त्रों का शोधन और निर्णय हो। जैन शास्त्र जैनाचार्यों की पैतृक सम्पत्ति है। उनका कर्तव्य है कि इन शास्त्रों के सुधार और बेहतरी के लिये कोई योजना काम में लावें परन्तु खेद है कि आजकल प्रायः साधु-संस्थाओं को एक दूसरे की कटु आलोचना से ही फुरसत नहीं मिलती। गतवर्ष कतिपय विद्वान जैनाचार्यों से इन शास्त्रों के विषय में बार्तालाप करने का मुझे सु-अवसर मिला । उनसे जो वार्तालाप हुआ वह उसी प्रकार यहां दिया रहा है जिससे स्थिति पर कुछ प्रकाश पड़े। तेरापंथी-युवक-संधैं लाडनू (मारवाड़) द्वारा प्रकाशित बुलेटीन नम्बर २ में 'शास्त्रों की बातें' शीर्षक मैंने एक लेख दिया था जिसमें चन्द्र-प्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्रके दसम प्राभूत के सतरहवें प्रतिप्राभृतमें भिन्न भिन्न नक्षत्रों में भिन्न भिन्न प्रकार के भोजन करके यात्रा करने पर कार्य सिद्धि होनेका कथन है और इस भोजन-विधान में ११० स्थानों में भिन्न भिन्न प्रकारके मांसों के भोजन का भी कथन है यह बतलाया था। उस समय जैनश्वेताम्बर तेरापं-थ सम्प्रदाय के कुछ सन्त-मुनिराजों से इस सम्बन्ध में मालूम
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