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जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! की प्रत्येक बात सत्य प्रमाणित हो जायगी। ऐसे सज्जनों से मेरा एक प्रश्न है कि वर्तमान पृथ्वी, जो गैन्द की तरह एक गोल पिण्ड है, शायद आपकी भावना के अनुसार ढ़हकर चपटी हो जाय, और उसकी पच्चीस हजार माइल की परिधि टूटकर असंख्यात योजन लम्बा चौड़ा चपटा स्थल बन कर फैल जाय ; परन्तु एक गोलाई के व्यास की परिधिका बढ़ना कैसे सम्भव होगा जो जैन शास्त्रों के बनाये हुये Formula (गुर ) से गणना करने पर प्रत्यक्ष के माप से बड़ा और गलत प्रमाणित हो रहा है ! अब तो शास्त्रों की उन बातों से जो प्रत्यक्ष में असत्य प्रमाणित हो रही हैं कतई इनकार करना अथवा उनके लिये आगा-पीछा करके बहाना बनाकर येन-केन-प्रकारेण असत्य को सत्य बताने का असफल प्रयत्न करना केवल अपने आपको हास्यास्पद बनाना है। समय ऐसा आ गया है कि इन शास्त्रों को हम यदि सब प्रकार से श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं तो हमें उनको विकार से रहित करना होगा। उनमें लिखी हुई असत्य बातों को निकालकर बाहिर करना होगा । संसार में विषमता फैलाने वाले विधि-निषेधों को हटाकर उनके स्थान पर मानवोपयोगी व्यवस्था स्थापन करनी होगी। अब 'बाबा बाक्यम् प्रमाणम्' का समय नहीं रहा। .
वर्तमान जैन शास्त्रों में परिवत्तन करना कोई साधारण काम नहीं है। इसके लिये संस्कृत प्राकृत भाषा तथा सब दर्शनों के पूरे ज्ञान की आवश्यकता है और इससे भी अधिक
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