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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
सकता है क्योंकि यदि यह सर्वज्ञ प्रणीत होते तो इनमें असत्य, अस्वाभाविक और असम्भव प्रतीत होने वाली बातें सैकड़ों तथा हजारों की संख्या में नहीं पाई जाती ।
क्या यह इन शास्त्रों की त्रुटि पूर्ण रचनाओंका परिणाम नहीं है कि एक ही शास्त्रों को मानते हुए इन में आये हुए वाक्यों तथा पाठों का भिन्न भिन्न अर्थ लगाया जा रहा है और उसी के कारण एक सम्प्रदाय दूसरे को मिथ्यात्वी बता रहा है तथा एक सम्प्रदाय लोकोपकारक संसार के कामों को निस्वार्थ भाव से करने पर भी एकान्त पाप बता रहा है और दूसरा सम्प्रदाय उन्हीं कामों को करने में पुन्य तथा धर्म बता रहा है ?
शास्त्रों के रचने में जो त्रुटियाँ रही हैं उन्हीं का यह परिणाम है कि भिन्न भिन्न अर्थ लगाये जा रहे हैं अन्यथा क्या कारण है कि एक ही शास्त्रों को मानने वालों के उपदेश में इस प्रकार का आकाश पाताल का अन्तर हो । इसमें तो कोई सन्देह ही नहीं कि जैम के साधु कंचन और कामिनी के सर्वथा सच्चे त्यागी हैं। उनके लिये यह तो दावे के साथ कहा जा सकता है कि वे किसी सांसारिक अथवा आर्थिक स्वार्थ के लिये शास्त्रों के इस प्रकार • भिन्न भिन्न अर्थ नहीं कर रहे हैं फिर अर्थ करने में इस प्रकार रात दिन का अन्तर किस लिये ? इसका एक मात्र कारण यही है कि शास्त्रों की रचना करने में इस प्रकार सन्दिग्ध शब्दों और बाक्यों का तथा पाठों का
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