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________________ १७६ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! (मत्स्य) नाम की भी कोई बनस्पति ही है। यदि मांस और मच्छ का बनस्पति फल विशेष में प्रमोग होता तो इस प्रकार के लोक प्रसिद्ध निकृष्ट अर्थ निकलने वाले शब्दों का खुलासा करते हुए सर्वज्ञ बता देते कि बनस्पति की गिर को भो मांस कहा जाता है और मच्छ नाम की भी वनस्पति होती है। बुलेटिन नम्बर २ के गत लेख में सूर्यप्रज्ञप्ति चन्द्रप्रज्ञप्ति के भिन्न भिन्न नक्षत्रों के भोजन से कार्य सिद्धि के कथन में जो भिन्न भिन्न ६-१० मांसों के नाम आये हैं उनके विषय में यह कहना कि बनस्पति विशेष के नाम हैं किसी प्रकार से भी नहीं बन सकता। कारण विपाक सूत्र के दुःख विपाक के सातवें अध्ययन में अमरदत्त कुमार की कथा चली है। उस कथा में धन्वन्तरी वैद्य द्वारा रोगियों को भिन्न भिन्न मांसों के पथ्य खाने के उपदेश से तथा स्वयम् के मांस खाने के फल स्वरूप छ8 नरक में जाने का कथन आया है। सूर्यप्रज्ञप्ति चन्द्रप्रज्ञप्ति में आये हुए भिन्न भिन्न वसभमंस, मिगमंस, दीवगमंस, मेढगमंस, णक्खिमंस, वाराहमंस, जलयरमंस, तित्तरमंस, वट्टकमंस और विपाक सूत्र में आये हुए मांसों के नाम प्रायः एक ही हैं। इसलिये एक सूत्र में उन मांसों को मांस समझ लेना और दूसरे सूत्र में उन्हीं मांसों के नामों को बनस्पति विशेष समझ लेना यह तो अपनी समझ की स्वच्छदता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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