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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
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इस मांस मच्छ शब्द के विषय में शंका बनी हुई थी उन्हों ने स्पष्ट शब्दों में यह नहीं कहा कि मांस शब्द का अर्थ वनस्पति की गिरी ही होता है और इसका अमुक कोष ग्रन्थ या शास्त्रों में इस प्रकार प्रमाण है वल्कि वे कहते हैं कि- 'ए मांस नाम बनस्पति नो गिर दीसे छै, अस्थि शब्द कुलिया बोल्या छै तो मांस शब्द मांहिली गिर सम्भवाय छै कुलिया ने अस्थि हाड अनेक ठामें कहया तेणे न्याय गिर ने मांस कहीजै माटे ए. बनस्पति नो माँस छै
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इस प्रकार दीसे छै, आदि शंका भरे शब्दों का व्यवहार कर हुए कहते हैं कि " जिन मत ना जाण गीतार्थ प्रमाण करे ते प्रमाण " यानी जैन धर्म के जानने वाले विद्वान जो प्रमाण करे वही प्रमाण मानना चाहिये ।
उपर आये हुए वाक्यों से यह स्पष्ट प्रकाशित होता है कि उन्हें शास्त्रों में मांस शब्द का अर्थ मांस के सिवाय अन्य कोई भिन्न अर्थ नहीं मिला। इसलिये कुलियों (गुठली ) को अस्थि कहने का न्याय बताते हुए किसी तरह से मांस को बनस्पति की गिर बता कर समाधान करने का प्रयत्न किया है। अस्थि शब्द का प्रयोग जहां पर गुठली ( कुलिया) के अर्थ में हुआ है वहां बनस्पति वर्ग में फलों के भेद बताने के प्रकर्ण में हुआ है । और जहां मांस शब्द के साथ हुआ है वहां उसका अर्थ केवल हाड ही होता है। केवल मांस के लिये बनस्पति की गिरी शास्त्रों में किसी स्थान में नहीं कहा गया है और न मच्छ
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