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________________ १७४ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! विचार प्रकट किये हैं वे इस प्रकार हैं-“ए मंस नाम वनस्पति नो गिर दीसे छै। भगवती शा० ८-३-६ पञ्चेन्द्री नो मांस खाधां नरक कही छै । (१) तथा प्रश्न व्याकरण अ० १० साधु ने मांस खाणों बज्यो छै. (२) तेमाटे ए बनस्पति नो मांस छै। पन्नवणा पद १ कुलिया ने अस्थि हाड कहया, (३) . तथा दशवैकालिक अ०५ उ० १ गाथा ७३ कुलिया ने अस्थि हाड कहया। इम कुलिया ने अस्थि हाड अनेक ठामें कहया तेणे न्याय गिरने मांस कहीजै-अने इहां बृत्तिकार रोग मिटावा मंसनो बाह्य परिभोग कहयो अने एहनो अर्थ टब्वाकर का ते कहे छे-इहाँ बृतिकार लोक प्रसिद्ध मांस मच्छादिक नो भाव बखाण्यो परन्तु सूत्र विरुद्ध भणी एह अर्थ इम न सम्भवै पछे वलि जिन मत ना जाण गीतार्थ प्रमाण करै ते प्रमाण । शास्त्र मांही अस्थि शब्द कुलिया घणे ठम्में कह्यो छै। पन्नवणा सूत्र माही बनस्पति ना अधिकारे एगटिया ते हरडे कहई बहु अट्टिया ते दाडिम कहई प्रभृति एवा शब्द छै. बलि अस्थि शब्दे कुलिया बोल्या छै तो मांस शब्द माहिली गिर सम्भवाये छै। एभणी ते बनस्पति विशेष मांस मच्छ फलाव्या छै। इम चारित्रिया मे मांस मच्छ उघाड़े भावी कारणे पिण आदरवा योग्य नहीं दीसै वली सूत्र माहि साधु ने उत्सर्ग भाव कहया छ। वृति में अपवाद कहयो छै तेणे विषै सूत्र नो अर्थ जिम उत्सर्ग छै तिमज मिलै ।" - इस उपर के कथन में श्री आचार्य महाराज के हृदय में भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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