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________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! १७३ देखने में आता हैं वह नहीं आता । जैसे श्री नेमीनाथ भगवान के विवाह के समय राजुल के पिता श्री उग्रसेन महाराज के घर पर भोजन सामग्री के लिये पशु पक्षियों को मारने के लिये एकत्रित किये जाने से अनुमान होता है । यदि श्रावक समाज में मांस भोजन के खिलाफ सख्त मनाही न हो तो मुनि समाज लिये भी अनिवार्य कारणों में पके हुवे मांस को अचित्तअवस्था में अचित्त समझ कर लिया जाना सम्भव हो सकता है । मद्य माँस का सेवन सर्वथा अनिष्ट कारक निन्दनीय एवम् दुर्गत का दाता है इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं । शास्त्रों में मांस भोजन के निषेध में अनेक पाठ आये हैं और कुछ पाठ ऐसे भी आये हैं जैसे उपर लिखे आचारांग के पाठ हैं । शास्त्रोंकारों को चाहिये था कि ऐसे पाठोंको सन्दिग्ध नहीं रखते साफ तौर पर खुलासा करके लिखते परन्तु यही तो उन्होंने त्रुटियों की हैं कि किसी सिद्धान्त को कायम करने में उसके पक्ष को पूर्वापर पूरी तरह निभा न सके । रचना करने में अनेक त्रुटियाँ कर दी। जिस बात के लिये किसी एक स्थान में विधि कर दी है तो दूसरे में उसी के लिये निषेध कर दिया है। सर्वज्ञ प्रणीत शास्त्रों में इस प्रकार बेमेल बातों का होना सर्वथा आश्चर्य की बात है । श्री जैन श्वेताम्बर तेरा पंथ सम्प्रदाय के श्रीमज्जायाचार्य महाराज ने 'प्रश्नोत्तर सार्द्ध शतक' नामक पुस्तक में पृष्ठ १५५ पर आचारांग सूत्र में आये हुए मंसं मच्छं शब्दों पर अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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