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________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! १६६ जावे तो शास्त्रकार के अभिप्राय के अनुसार जाकर मांस मछली या तेल के पुड़ों की याचना कर सकता है। रोगी साधु के लिये तो जल्दी जल्दी जाने का भी निषेध नहीं किया है । इस पाठ के लिये टीकाकार का मत है कि साधु की वैयावृत के लिये साधु मांस और मछली गृहस्थ के घर से याचना कर सकता है । आचारांग सूत्र के १० अध्ययन के १० बें उद्देश में एक वें पाठ है जो इस प्रकार है से भिक्खु वा सेज्जं पुण आएणेज्जा, वहु अट्ठियं मंसंवा, मच्छंवा बटुकंटगं अस्सिखलु पडिगाहितंसि अप्पेसिया भोयणजाए बहुउज्झि यधम्मिए - तहत्यगारं बहुअट्ठियं मंसं मछंबा बहुकंटगं लाभे स्वते जावणो पडिजाणेज्जा । " भावार्थ:थे: - बहुत अस्थियों ( हड़ियों ) वाला मांस तथा बहुत काँटे वाली मछली को जिनके कि लेने में बहुत चीज छोड़नी पड़े और थोड़ी चीज़ काम में आवे तो मुनि को वह नहीं लेनी चाहिये । इसी उपर के पाठ से लगता हुआ पाठ है जो इस प्रकार है- से भिक्खू माजाव समाणे सियाणं परो वहुअट्ठिएणा मंसेण, मच्छेण उवणिमन्तज्जा “आउसन्तो समणा, अभिकखसि बहुअट्ठयं मंसं पडिगाहतएं ? " एयप्पगार णिग्धोसं सोचा णिसम्म से पुव्बामेब आलोएज्जा " आउ सोतिवा बहिणिति वाणो खलु मे कप्पई से बहु-अट्ठियं मंसं पडिगहितए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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