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जैन शास्त्रों की असंगर्स बासें ! १६३ साधु को बुलाकर कहा कि तुम मिढीय ग्राम में रेवती गाथापनि के घर जाओ। .. उसने मेरे लिये दो कपोत ( कबूतर) शरीर बनाये हैं उन कपोत शरीरों को मत लाना और अन्य के लियेमार्जार के लिये कुक्कुड़ मांस बनाया है उसे मेरे लिये ले आना। भगवान की आज्ञा के अनुसार सिंह अणगार उस रेवती गाथा पनि के घर गया और मार्जार के लिये बनाये हुए उस कुक्कुड़ मांस को लाकर भगवान को दिया जिसको खाकर भगवान ने अपना रोग उपशान्त किया। ___ भगवती सूत्र का वह मूल पाठ इस प्रकार है। 'तं गच्छहण तुमं सीहा मिढियगाम जयरं रेवतीए गाहावइणीए गिहे, तत्थणं रेवतीए गाहाबइए मम अठाए दुवे कवोयसरीरा. उवक्खडिया ते हिंणो अट्टो अत्थि। से अणे परियासि मजार कडए कुक्कुड़ मंसए तमाहारहि, तेणं अट्ठो।
भावार्थः-इसलिये हे सिंह मुनि ! मिंढिय गांव नामक नगर में रेवती गाथापत्नि के घर तँ जा। उसने मेरे लिये दो कपोत शरीर पकाये हैं जिससे कुछ प्रयोजन नहीं ; किन्तु उसके यहां अपनी बिल्ली के लिये बनाया हुआ कुक्कुड़ मांस रखा है वह मेरे लिये ले आना उस से काम है। - इस पाठ पर विवेचन करते हुए कुछ ने तो कपोत शरीर को कबूतर का शरीर और मार्जार कृतं कुक्कुड़ मांस को बिल्ली के लिये बनाया हुआ कुकड़े का मांस बताया है और कई आचायौं ने इन नामों को वनस्पति पर्क में लेकर कपोत को विजोरे का फल
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