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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
और कुक्कुड़ मांस को कोला (कुष्मान्ड) की गिरी तथा मार्जार शब्द को वायु रोग विशेष बतला कर समाधान किया हैं।
प्राचीन कोष ग्रन्थों में इन शब्दों को-कपोत को कबूतर, कुक्कुड़ को मुर्गा और मार्जार को बिल्ली लिखा हुआ है। जिन आचार्यों ने इन शब्दों को बनस्पति वर्ग में लेकर कपोत शरीर को बिजोराफल, कुक्कुड मांस को कोले ( कुष्माण्ड ) की गिरी और मार्जार को बायु रोग विशेष बताने का प्रयत्न किया है उनही के शब्दों को लेकर जर्मनी के डाक्टर हरमन जेकोबी को यह समज्ञाया गया था कि यह शब्द बनस्पति विशेष के लिये आये हुए हैं। जिन आचार्यों ने शास्त्रों में आये हुए ऐसे निकृष्ट शब्दों पर परदा डालने का प्रयत्न किया है उन्होंने बुरा नहीं किया बल्कि प्रशंसनीय कार्य ही किया है। कारण कम से कम उनका आधार लेकर इन शब्दों से उत्पन्न होने वाली बुराइयों से तो बचा जा सकता है। उन आचार्यों को चाहिये था कि शास्त्रों में आये हुए ऐसे शब्दों को उन स्थानों से सर्वथा हटा देते जिस प्रकार ४५ सूत्रों में से १३ सूत्रों को हटा कर शेष ३२ सूत्रों को ही मान्य रखा गया है। सब से बड़ी विचारने की बात तो यह है कि क्या विजोरा
और कुष्माण्ड, (कोला ) फलों का नाम उस समय भारतवर्ष में प्रचलित नहीं थे अथवा बिजोरे को कपोत शरीर और कुष्माण्ड (कोले ) को कुक्कुड मांस ही कहा जाता था। इन ही शाकों में बिजोरे का नाम माउलिंग था विजपुर और
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