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________________ १६२ जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! आया है वे सब मिथ्या प्रमाणित हो जायँ ; परन्तु शास्त्रों की रचना करने में शास्त्रकारों ने ऐसी त्रुटियां रख दी हैं अथवा रचना के पश्चात् ऐसे प्रक्षेप हो गये हैं कि जिनका समाधान या सुधार हो सकना असम्भब के लगभग है। एक बात के लिये एक स्थान में कुछ ही लिखा हुआ है तो दूसरे स्थान में उससे विरुद्ध लिखा हुआ है। इसी का यह परिणाम है कि एक ही सूत्रों को मानते हुए मानने वालों में परस्पर विरोध पड़ रहा है और एक दूसरे को सब मिथ्यात्वी बता रहे हैं। विवादास्पद विषयों का सन्तोषजनक निर्णय आज तक नहीं हो सका और जब तक इन शास्त्रों की अक्षर अक्षर सत्यता का विश्वास हृदय से नहीं हट जायगा भविष्य में भी निर्णय हो सकने की आशा करना दुराशा मात्र है। जैन शास्त्रों में मांस भोजन के सम्बन्ध में सूर्यप्रज्ञप्ति चन्द्रप्रज्ञप्ति के अतिरिक्त आये हुये कुछ प्रसंग पाठकों के विचारार्थ नीचे लिख कर उन पर विबेचन करूँगा जिससे पाठक अपने निर्णय करने का प्रयत्न कर सकें। भगवती सूत्र के १५ वे शतक में गोसालक के विषय का वर्णन है। गोसालक ने भगवान महाबीर पर ( भस्म करने के लिये ) तेजो लेश्या डाली। तेजो लेश्या ने भगवान पर पूरा असर नहीं किया परन्तु उससे उनके शरीर में विपुल रोग होकर पित्तज्वर, पेचिश और दाह उत्पन्न हो गया। इस रोग को उपशान्त करने के लिये भगवान ने अपने शिष्य सिंह नामक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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