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'तेरापंथी युवक संघ:का बुलेटिन नं० ३' अक्टूबर सन् १९४४ ई०
मांस शब्द के अर्थ पर विचार .
तेरापंथी युवक संघ, लाडनूं द्वारा प्रकाशित बुलेटिन (पत्रक) नम्बर २ में शास्त्रों की बातें' शीर्षक मैंने एक लेख दिया था जिसमें बर्तमान जैन सूत्रों की त्रुटिपूर्ण रचना और सन्दिग्ध बचनों के कारण, सभी श्वेताम्बर जैन सम्प्रदायों में एक ही शास्त्रों को मानते हुये परस्पर होने वाले विरोध और वैमनश्य से जैनत्व का जो प्रित दिन हास हो रहा है उस पर प्रकाश डाला था। और उसी लेख में सूर्यप्रज्ञप्ति तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति दोनों सूत्र हरफ ब हरफ एक होते हुवे भी भिन्न भिन्न माने जाने के विषय में लिखते समय प्रसङ्ग वसात् उनमें के दसम प्राभृत के सतरहवें प्रतिप्राभृत में भिन्न भिन्न नक्षत्रों में भिन्न भिन्न प्रकार के मांस भोजन करके यात्रा करने पर कार्य सिद्धि होने के कथन पर आश्चर्य प्रकट किया था। कारण अहिंसा प्रधान कहलाने वाले जैन धर्म के शास्त्रों में इस प्रकार मांस भोजन के कथन का होना अवश्य आश्चर्य की बात है। मुनि समाज ने इस विषय पर समालोचना करते हुये यह फरमाया कि शास्त्रों में मांस भोजन के सम्बन्ध का जो कथन है वह मांस नहीं है परंतु वनस्पति विशेष के नाम हैं। बड़ी प्रसन्नता की बात होगी यदि जैन शास्त्रों में मांस भोजन के विषय का जिन जिन स्थानों में प्रसंग
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