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जैन शास्त्रों की असंगत बातें! भोजन करके गमन करने पर ही यदि कार्य की सिद्धि हो जाती होती तो आजतक किसी भी व्यक्ति का कोई भी कार्य सिद्धि होने से बाकी नहीं रहता। आयुर्वेद की तरह यदि इन मांसों के भोजन से रोग विशेष पर आरोग्य होने का कथन होता तो वस्तु स्वभाब के आधार पर कथंचित माना भी जा सकता था परन्तु कार्य सिद्धि का कथन सर्वथा असत्य एवम् अयुक्त है। बास्तव में इन सूत्रों के रचयिताओं ने रचना करने में इतनी अधिक त्रुटियां रखदी हैं कि जिसका परिणम जैनत्व के लिये भयंकर सिद्ध हो रहा है। जैन विद्वानों का इस समय परम कर्तव्य है कि सूत्रों के संदिग्ध स्थलों को स्पष्ट करके इनके आधार पर प्रतिदिन बढ़ने वाले नाना फिरकों को एक सूत्र में बांधने का प्रयास करें।
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