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________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! १५५ चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति पर दृष्टि डालते हैं। चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति दोनों भिन्न २ दो सूत्र माने गये हैं। बारह उपागों में ज्ञाता धर्म कथांग का एक छट्ठा उपाङ्ग और दूसरा सातवां उपांग माना गया है। परन्तु आप इन सूत्रों को पढ़ जाइये दोनों सूत्र अक्षरसः एक ही हैं । इन दोनों में कुछ भी भिन्नता नहीं फिर इनका भिन्न २ दो नाम और एक को छट्ठा उपांग और दूसरे को साता उपांग किस लिये बताया गया है इसका कारण समझ में नहीं आता। ____इन सूत्रों की बातेंप्रत्यक्ष और गणना ( Mathematically) में असत्य प्रमाणित हो रही हैं यह एक जुदी बात है। परन्तु सवाल तो यह है कि जब कि यह दोनों सूत्र हरफ ब हरफ एक ही हैं तो संसार के सामने दो बता कर दिखाने का भी तो कोई मकसद होना चाहिये। __दृष्टिवाद नाम का बारहवां अंग मय १४ पूर्व और कई वे सूत्र जिनके पठन मात्र से सेवा में देवता हाजिर होना अनिवार्य था का होना बता कर साथ ही उनका विच्छेद जाना या लोप हो जाना कहा गया है। चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति दोनों सूत्र हरफ ब हरफ एक होते भी दो बताने के कथन पर गौर करने से इस कथन पर पूरा शक पैदा हो जाता है कि आया यह चवदह पूर्व और पठन मात्र से सेवा में देव हाजिर करने वाले ग्रन्थ थे या संख्या और महत्व बढ़ाने के लिये कोरी कल्पना मात्र ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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