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________________ १५४ जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! पूर्ण रचना मात्र है। सूत्रों की त्रुटि पूर्ण रचना के विषय में भिन्न भिन्न नुकते ( Points) को लेकर यदि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के फिरकों की मान्यता में जो परस्पर अन्तर है, उसे स्पष्ट किया जाय तो इस छोटे से लेख में सम्भव नहीं, इसके लिये तो एक स्वतन्त्र पुस्तक की रचना करनी पड़ेगी परन्तु त्रुटि पूर्ण रचना के विषय की कुछ आम (General) बातें बिचारने योग्य हैं। ___ भगवती सूत्र को बहुत बड़ा दिखाने के लिये उसमें ३६००० प्रश्नों का कथन किया गया है। एक ही प्रश्न को केवल प्रश्नों की संख्या बढ़ाने के विचार से बार २ कई स्थानों में रखा गया है और आप देखेंगे कि सूत्रों की संख्या और उनका कलेवर बढ़ाने के लिये ठीक वैसे ही बहुत से बल्कि वे के वे ही प्रशन जो भगवती में हैं वही जीवाभिगम में मौजूद हैं वही पन्नवणा में और यही जम्बूद्वीप पन्नति आदि में। इस प्रकार परस्पर एक दूसरे सूत्र में वे के वे ही प्रश्न जोड़-जाड़ कर सूत्रों की संख्या और कलेवर बढ़ाने का प्रयास किया गया है। सूत्रों को देखने वाले भली प्रकार जानते हैं कि सब सूत्रों में पुनरावृति भरी पड़ी है। सब स्थानों में यह नजर आ रहा है मानो केवल कलेवर बढ़ाने की भावना से एक ही बात का बराबर अनेक बार प्रयोग किया गया है। संसार के सामने Volume बढ़ा कर दिखाने की भावना उस समय और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है जिस समय हम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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