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जैन शास्त्रों की असंगत बातै ! हमारे जैन शास्त्रों की चपटी मानी हुई पृथ्वी पर तो हर स्थान में १२ घन्टे का दिन और १२ घन्टे की रात्रि होनी चाहिये, मगर हम देख रहे हैं कि इस पृथ्वी पर ही कहीं तो ३ महिने तक का दिन और कहीं ३ महिने तक की रात्रि हो रही है। दक्षिण और उत्तर ध्रुवों पर तो एक तरफ सूर्य ६ महिनों तक लगातार दिखाई देता है और दूसरी तरफ ६ महिनों तक सूर्य गायब रहता है।
हो सकता है, जैन शास्त्रों में जिस वक्त इस विषय पर लिखा गया होगा, उस समय अन्तर्जगत के भौगोलिक अनुभव इतने विकसित नहीं हो पाये थे। यह मालूम नहीं हो पाया था कि इसी पृथ्वी पिन्ड के भी किसी भाग पर इस प्रकार महिनों की रात्रि और महीनों का दिन हो रहा है। फिर यह तो कल्पना भी कैसे की जाती कि पृथ्वी धुरी की तरफ ६६३ डिग्री झुकी हुई है। आज तो ऐसे ऐसे साधन उत्पन्न हो गये हैं जिनके जरिये सूर्योदय के समय कलकत्ते में बैठा हुआ व्यक्ति न्यु ओरलिन ( New Orleans) में बैठे हुए व्यक्ति को बेतार-टेलीफोन द्वारा वहाँ के सूर्य की बाबत पूछ कर यह उत्तर पाता है कि बस सूर्य वहाँ अस्त हो ही रहा है। इसीलिये तो कहा जा रहा है कि विशाल ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। यदि इस विषय का इतना ज्ञान और ऐसे साधन उस वक्त हो पाते तो आज इस प्रकार की गलतियां देखने को क्यों मिलतीं ? यह तो भौगोलिक मोटी २ बातें हैं जिनको छोटी कक्षा के विद्यार्थी भी
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