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जैन शात्रों की असंगत बातें !
जानते हैं। तुओं का बदलना, हवा का बदलना, वर्षा का होना और बदलते रहना आदि अनेक बातें है जिनको वर्तमान विज्ञान के बतलाये अनुसार यथार्थ उतरते देख रहे हैं।
किसी श्रद्धालु श्रावक को जब ऐसी प्रत्यक्ष बातों पर झुकते और रुजू होते देखते हैं तो उपदेशक लोग यह युक्ति पेश करते हैं कि जिन शास्त्रों में इन विषयों का विस्तृत वर्णन था, वे ( विच्छेद ) लुप्त हो गये ; चौदह पूर्व का जो ज्ञान था, वह (विच्छेद ) लुप्त हो गया, आदि। मगर उनसे यह नहीं कहते बनता कि इन विषयों पर काफी लिखा भरा पड़ा है। सूर्यपन्नति, चन्द्रपन्नति, भगवती, जीवाभिगम, पन्नवणा आदि अनेक सूत्रों में इन विषयों पर काफी लिखा मिलता है। फिर भी यह थोड़ी सी बातें जो आज प्रत्यक्ष साबित हो रही हैं, इनमें नहीं पाई जातीं। नहीं क्यों पाई जाती ? अगर नहीं पाई जाती तो यह ऊपर लिखी बातें कहां से निकल पड़ी !
जिन शास्त्रों का अक्षर अक्षर सत्य होने की दुहाई दी जा रही है, एक अक्षर को भी कम-ज्यादा समझने पर अनन्त संसार-परिभ्रमण का भय दिखाया जा रहा है ; उनमें लिखी बात अगर प्रत्यक्ष के सामने यथार्थ न उतरें तो विवेकशील मनुष्य का यह कर्तव्य हो जाता है कि इन शास्त्रों में सत्य क्या क्या है, इसकी परीक्षा करे । विज्ञान, युक्ति, न्याय और तर्क की कसौटी पर कस कर यथार्थ में जो सत्य उतरे, उसी पर अमल करे।
इस लेख का विषय विशेषतः गणना विषयक ( Matter of
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