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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
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ऊपर वह ठहर नहीं सकता यानी कलशों में जल नीचे बैठ जायमा और वायु ऊपर उठ जायगी और कलशों के मुग्व खुले रहने के कारण वायु निकल कर बाहर चली जायगी। फिर किस तरह से तो ज्वार होगा और किस तरह से भाटा। यह एक सीधी सी बात थी, मगर सर्वज्ञों ने अपने तर्क को कतई तकलीफ नहीं दी। सोच लिया सर्वज्ञता की छाप मार देने पर फिर कोई सवाल उठ ही नहीं सकेगा, तो किस लिये ऊहापोह की जाय ? - मनुष्य मात्र जानता है कि किसी खुले मुँह के पात्र में नीचे वायु और ऊपर जल कभी नहीं ठहर सकता मगर इस सर्वज्ञता की छाप ने भक्तों के तर्क और आंखों पर परदा डाल रखा है। शास्त्रों के रचने वालों ने भगवान के नाम पर व्यर्थ की असत्य कल्पनाएँ करके प्रभु महावीर के पबित्र जीवन पर नाना तरह के अशिष्ट आवरण चढ़ा दिये । शास्त्रों में यदि एकाध बात ही कल्पित होती और इनके आधार पर ऊपर कथित समाजघातक सिद्धान्त न फैलते तो इन “बूझबुजागरी" कल्पनाओं को सत्य की कसौटी पर कसने की कोई आवश्यकता ही अनुभव नहीं होती, मगर जब कि इनमें असत्य, अस्वाभाविक औरअसम्मव प्रतीत होनेवाली बातें हजारों की संख्या में हैं ( जिन्हें यदि इस प्रकार लेखों द्वारा बताई जाये तो बीसों वर्षों तक लेख चाल रखने पड़े) इनके रहस्य को प्रकाश में लाना नितान्त आवश्यक है।
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