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________________ १५० जैन शास्त्रों की असंगत बातें! ऊपर जल की धार उलटी बढ़ती है। इसकी ऊंचाई कभी कभी बहुत अधिक हो जाती है। ज्वार के वेग से चढ़ा हुआ जल नदी के प्रवाह के कारण ऊपर चढ़ने से रुक जाता है और एक प्रकार से जल की दीवार सी खड़ी हो जाती है । पानी की इसी ऊंची दीवार को 'बाण' (Tidal Bore) कहते है। ज्वार भाटे का जिनको प्रत्यक्ष अनुभव है, वे अनुमान कर सकते हैं कि इस विषय की जैन शास्त्रों में की हुई “बूझबुजागरी" कल्पना कहां तक सत्य है ? समुद्र में पानी ऊपर उठता और नीचे बैठ जाता है, यह देख कर सर्वज्ञों ने सोचा कि सर्वज्ञता के नाते इस मंसले का भी तो कोई समाधान करना चाहिये । पृथ्वी और चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का तो पता था नहीं अतः उन्होंने सोचा कि यदि इसका कोई कारण हो सकता है तो समुद्र के भीतर ही हो सकता है और वह भी कहीं वायु के वेग का ही। बस फौरन बड़े बड़े पाताल कलशों की कल्पना कर डाली और कलशों में वायु भर दी। कलशों के तीन भाग करके नीचे के भाग में वायु और उसके उपर ( बीच) के भाग में वायु और जल एक साथ और उपर के भाग में केवल जल बता दियाक्योंकि उन्हें ऊपर के जल को ही तो बढ़ता हुआ और कम होता हुआ दर्शाना था। मगर यह नहीं सोचा कि जल वायु से वजन में बहुत अधिक भारी होने के कारण वायु के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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