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जैन शास्त्रों की असंगत बासें ! १४७ प्रत्येक २४ घन्टे ५२ मिनट में दो दो वार समुद्र का जल-तल ऊपर उठता है और दो बार नीचा बैठ जाता है। एक ही समय पर सब स्थानों में ज्वार भाटा नहीं आता-भिन्न भिन्न स्थानों पर ज्वार और भाटे का समय भिन्न भिन्न होता है परन्तु प्रत्येक स्थान पर ज्वार और भाटे के आने का समय पूर्व निश्चित होता है । उसमें अन्तर नहीं पड़ता। ज्वार की लहरें क्रमानुसार पृथ्वी के सब जलमय स्थानों पर पहुंचती है और इस प्रकार ज्वार भाटे का चक्र पृथ्वी की परिक्रमा सी करता रहता है इस चक्र का कभी अन्त नहीं होता। ज्वार भाटे का सम्बन्ध चन्द्रमा से है। चन्द्रमा पृथ्वी के चारों तरफ २२८७ मील प्रति घन्टे की गति से परिक्रमा करता है। ज्वार भाटे की उत्पत्ति पृथ्वी और चन्द्रमा की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति से होती है। यह आकर्षण शक्ति पदार्थों के द्रव्य की मात्रा के अनुपात में बढ़ती है
और उनके बीच की दूरी के वर्ग के अनुपात में कम होती है पृथ्वी का अधिकांस भाग जलमग्न है पृथ्वी पर जल का एक प्रकार आवरण सा चढ़ा हुआ है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण जल का आवरण पृथ्वी पर बंधा सा है, परन्तु चन्द्रमा का आकर्षण उसको अपनी तरफ खींचता है परिणाम यह होता है कि चन्द्रमा के ठीक सामने पड़ने वाले प्रदेश में जहाँ उसका खिंचाव सब से अधिक होता है, वहां का जल चन्द्रमा की तरफ खिंचता है और आस-पास के जल-तल से
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