SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें १६७१ छोटे पाताल कलश ६ पंक्तियों में लगे हुए हैं। सब मिला कर ४ बड़े और ७८८४ छोटे पाताल कलश हैं। प्रत्येक छोटे पाताल कलश का माप इस प्रकार है-एक हजार योजन लम्बा, पानी में डूबा हुआ है। मूल में १०० योजन चौड़ा मध्य में १००० योजन चौड़ा और मुखपर १०० योजन चौड़ा है। इनकी ठोकरी १० योजन मोटाई की है। तीन भाग करने पर इनका प्रत्येक भाग ३३३३ योजन का होता है जिस में नीचे के भाग में वायु, बीच के भाग में वायु और जल एक साथ और ऊपर के भाग में निकेवल जल है। इन सब पाताल कलशों में नीचे के और बीच के भाग में ऊर्ध्व-गमन स्वभाव बाली वायु उत्पन्न होती है, हिलती है, चलती है, कम्पित होती है क्षुब्ध होती है और परस्पर सङ्घर्ष होता है तब पानी उपर उछलता है और बढ़ता है। जब नीचे के और बीच के भाग में ऊर्ध्व गमन स्वभाव वाली वायु शान्त हो जाती है, तब पानी नीचा हो जाता है। इस तरह अहोरात्रि में यानी ३० मुहूर्त में दो वक्त वायु उत्पन होती है, तब ज्वार होता है और दो ही वक्त भाटा होता है। यह है जैन शास्त्रों में ज्वार भाटे का कारण । यह पाताल कलश शास्वत हैं इस लिये इन के योजनों को २००० कोस के एक योजन के हिसाब से समझना चाहिये । ज्वार भाटे के विषय में वर्तमान अन्वेषणों से जो प्रमाणित हुआ है, वह इस प्रकार है। समुद्र के जल-तल के ऊपर उठने को ज्वार और नीचे बैठने को भाटा कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy